महाराणा प्रताप मेवाड़ के एक महान शासक ही नहीं बल्कि राष्ट्रभक्त और स्वाभिमान की एक अलौकिक मिशाल है. ९ मई , १५४० में जन्मे प्रताप २४ फरवरी, १५७२ में राजतिलक भी विषम परिस्थितियों में हुआ और मेवाड़ के अन्य सामंतों ने इन्हें शासन का भर सौपा जिसे इन्होंने मान मर्यादा के साथ निभाया . १८ जून ,१५७६ का हल्दीघाटी युद्ध और फिर १२ वर्षों तक अनेकों युद्धों में लगातार संघर्षों में भी किंचितमात्र नहीं डिगे.
अकबर महान भी प्रताप का आदर करते थे. महाराणा प्रताप के १९ जनवरी, १५९७ ( ५७ वर्ष , चावंडा ) की आयु में स्वर्गवास होने पर अकबर भी उदास हो गए. "वीर विनोद " के अनुसार " बादशाह अकबर महाराणा प्रताप सिंह के देहांत का हाल सुनकर बहुत फ़िक्र और हैरानी के साथ चुप रहा. यह देख कर दरबारियों को बड़ा अचम्भा हुआ कि महाराणा प्रताप के मरने की खबर सुनकर अकबर को खुश होना चाहिए न कि उदास . "
उस समय का वर्णन चारण दुरसा आढ़ा ने एक छप्पय के माद्यम से कहा. अकबर दुरसा से नाराज थे , उसे बुलाया और छप्पय सुन कर ईनाम दे कर विदा किया . छप्पय था -
गो आड़ा गवडाय, जीको बहतो धुर बामी
नव रोजे नह गयो, नगो आतशा नवल्ली
न गो झरोखा हेत, जेथ दुनियाण दहल्ली
गहलोत राण जीती गयो, दसण मूंद रशनां डसी
निशास मूक भरिय नयण , तो मृत शाह प्रताप सी
अर्थ - "अपने घोड़ों पर दाग नहीं लगवाया,अपना पगड़ी किसी के सामने नहीं झुकाई , अदावत वाली कविता(आड़ा ) गवाता हुआ, विपरीत चलता हुआ, जो रोजे के जलसे में नहीं गया, शाही डेरों में नहीं गया और दुनिया में रोब वालों के झरोखों के निचे नहीं गुजरा .महाराणा प्रताप इसी जित के साथ गया. बादशाह ने जुबान को दांतों तले दबाया और ठंडी सांस लेकर आँखों में पानी भर लिया . ऐ प्रताप सिंह ! तेरे मरने से ऐसा हुआ."
आप स्वाध्याय करें : मेवाड़ के महाराणा और शाहंशाह अकबर / राजेंद्र शंकर भट्ट * महाराणा प्रताप / राजेंद्र शंकर भट्ट
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