विश्व ह्रदय दिवस : 29 सितम्बर
मानव शरीर की बहुमूल्य रचना है - ह्रदय. मुट्ठी भर आकार का यह दिल जन्म से / जन्म से पूर्व से लेकर अंतिम सांस तक धड़कता है . ह्रदय की धड़कन का नाम ही जीवन है . दिल मानव के शरीर की छाती की पसलियों के नीचे बायीं ओर स्थित होता है . यह लगभग 12 सेमी लम्बा,8-9 सेमी चौड़ा और 6 सेमी गहरा (आगे से पीछे ) होता है . पुरुषों में ह्रदय का भार 300 ग्राम और महिलायों में इसका भार 250 ग्राम होता है . औसतन यह शरीर के भार के मात्र 0.5 प्रतिशत भार के तुल्य होता है .
ह्रदय चार भागों में बनता होता है . ये चेम्बर के तुल्य है . बायीं और दायीं ओर बने इन चेंबर को आलिन्द ( atrium) और निलय ( ventricle ) कहा जाता है . इनमें लगे वाल्व खून को आगे बढाने में मदद करते है . ह्रदय के सिकुड़ने ( systole ) से खून आगे बढ़ता है और फैलने (diastole) की क्रिया से खून ह्रदय में प्रवेश करता है . ह्रदय की सिकुड़ने और फैलने की क्रिया को दिल की धड़कन ( pulse ) कहते है . ह्रदय का प्राकृतिक पेसमेकर होता है - sinoatrial node ( SA Node ) जो बाएं निलय में स्थित होता है और नियमित तथा अबाध रूप से पूरे दिल को अपनी विद्युतीय स्पंद से धड़काता है .
नवजात शिशुओं में 130 और युवाओं में 60 से 100 धड़कन प्रति मिनट होती है . औसतन 72 धड़कन / मिनट के हिसाब से एक दिन में 1 लाख बार दिल धड़कता है . दिल एक मिनट में लगभग 5 लीटर खून को पम्प कर आगे बढ़ाता और एक दिन में खून पम्प किया जाता है - 72000 लीटर .
फैफडों की वायु से ऑक्सिजन ग्रहण कर ह्रदय इसे शारीर के अन्य भागों तक पंहुचाता है . फलस्वरुप शरीर की सजीवता बनी रहती है .
खून का पर्याप्त प्रवाह न होने के कारण दिल से सम्बंधित बीमारियाँ घेर लेती है . ह्रदय धमनियों में कोलेस्ट्रोल के ज़माने से हार्ट अटेक की संभावना प्रबल हो जाती है .समय पर उपचार ने मिलाने से ये समस्या जानलेवा हो जाती है .
वंशानुगत, खान-पान, कम परिश्रम, कम व्यायाम आदि अनेकों कारणों से ह्रदय रोग पनपते है . हरी साग - सब्जी , फल ,मोटा अनाज, रेशे युक्त अनाज आदि के अधिक से अधिक प्रयोग करने , तेल-घी से बनी चीजों से परहेज करने और समुचित नियमित व्यायाम करने से ह्रदय रोगों से बचा जा सकता है .
ह्रदय पर भारीपन, सांस में घुटन, बाएं हाथ में दर्द , सीढियाँ चढाने पर दम घुटना आदि अनेक लक्षण ह्रदय की कमजोरी को बताता है .40 वर्ष उपरांत तो ह्रदय सम्बन्धी विकारों की नियमित जांच करते रहना चाहिए .
ह्रदय से सम्बंधित समस्याओं के अनुरूप अन्गियोप्लास्टी , बाईपास सर्जरी , वाल्व बदलना आदि ईलाज कराते हुए समय पर बचा जा सकता है .
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