अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस , ८ मार्च को मनाया जाता है. इस अवसर पर महिलाओं की दशा एवं दिशा पर गहन चिन्तन मनन कर भविष्य उन्नत बनाने का संकल्प लेना है. प्राचीन भारत में महिलाओं के प्रति आदर सम्मान था. नारी को पूज्य माना जाता था. नारी बिना पुरुष अधुरा माना जाता था . अर्धनारीश्वर की कल्पना ही नहीं बल्कि हकीकत में माना. नारी को समानरूप से अधिकार और स्थान प्राप्त था. गार्गी, मैत्रेय आदि उन विदुषियों के नाम है जिन्हें महान संतों के तुल्य माना. उस काल में महिला शांति और शक्ति दोनों का
प्रतीक थी .कालांतर में विदेशी आक्रमणों एवं शासन से महिलाओं ने अपने को संकुचित दायरे में रखते हुए सुरक्षित कर लिया.
नारी आधी दुनिया का वर्चस्य रखती है.आज पुन: नारी जागृत होकर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है. अनगिनत महिलायें आज अपने क्षेत्र में अग्रणी और विकास में अभूतपूर्व योगदान दे रही है. शिक्षित और अशिक्षित महिला अपने ही नहीं बल्कि परिवार, समाज और राष्ट्र की धुरी है.आज की आवश्यकता है भ्रूण हत्या, दहेज़ प्रथा आदि की कुप्रथाओं को बंद कर इसे शिक्षित कर प्रोत्साहित करने की. महिला का भविष्य सुनहरा होने पर परिवार, समाज और संसार का भविष्य भी संवरते समय नहीं लगेगा.
सृष्टि जननी, प्रेम धारिणी, शांति, शक्ति स्वरूपा है नारी
कोमलांगी, सबल, गृह स्वामिनी, फिर क्यों है लाचारी
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