Thursday, April 13, 2017

जलियाँवाला बाग़ - नर संहार

0413 स्पन्दन-जलियांवाला बाग
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मानवता पर बर्बर घात है,
कहता है जलियांवाला बाग
सीसक रही सैकड़ों आत्माएँ,
संहार जलियांवाला बाग
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संदर्भ : 13 अप्रैल,1919, बैशाखी का दिन. जलियांवाला बाग, अमृतसर,पंजाब में सजे धजे छोटे बड़े,महिला पुरुष और बच्चे बच्चियाँ बड़े उत्साह-उमंग के साथ बैशाखी का पर्व मनाने एकत्रित. पंजाब में बैशाखी का पर्व खेत में महीनों की मेहनत के बाद पकी हुई फसलों की कटाई व नई फसल मिलने की खुशी पर मिलजुल उत्साह मनाने का दिन होता है. रोलेक्ट एक्ट के विरुद्ध सरकार का जगह जगह विरोध हो रहा था. गाँधी जी एवम् अन्य नेताओं की गिरफ्तारी से रोष भी था. जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण विरोध हेतु एक सभा का आयोजन भी था तथा उस समय आम जनता भी बैशाखी पर्व के कारण इस बाग में एकत्र थी. तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने इसे स्वतंत्रता के लिए होने वाली सभा समझकर बौखला कर जलियांवाला बाग को चारों ओर सैनिकों से घेर लिया और निहत्थे लोगों पर अंधाधुँध गोलियों की बौछार करने लगे. उस समय गर्वनर माईकल ओ' डायर था और जनरल आर.इ.एच.ओ'डायर की सांठ गांठ ने इस घिघौनी हरकत को अंजाम दिया. वे नर संहार के कालदूत बने. इस अप्रत्याशित हमले से बचने के लिए लोगों में भगदड़ मच गई. अपने बचाव के लिए लोग यहाँ बने कुएँ में भी कूद पड़े जो कुछ ही पल में भर गया.लोगों को बाहर निकलने व बचने का मौका नहीं मिला. 389 लोग गोलियों से,भगदड़ में कुचलने और कुएँ में दबने से काल कवलित हो गए और 1516 लोग घायल हो गए. वास्तविक आँकड़ा और भी अधिक है. बालक ऊधम सिंह उस समय मात्र 14 साल का था, इस बाग़ में था, घायल हो गया था. उसके दिल पर इस दिल दहलाने वाली घटना ने उसे दृढ़ बनाया और कालांतर में इंग्लैंड जाकर सार्वजनिक भीड़ में भी अचूक निशाने से गोली मारकर ओ'डायर की हत्या कर जलियांवाला बाग कांड की बदला लेकर ऋण से मुक्त हुआ. शहीद ऊधम सिंह (राम मोहम्मद आज़ाद सिंह, हिन्दू मुस्लिम व सिख एकता हेतु अपना नाम भी बदला) का बलिदान लोगों के प्रेरणा स्रोत बना. मानवता के नाम पर यह जलियांवाला बाग कांड एक स्याह कालिख है. तथाकथित साम्राज्यवादी ताकतें एवं इस प्रकार की सोच मानवता के दुश्मन है. .
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©jangid.170413

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