Wednesday, December 25, 2013

Ashtavakr Geeta Darshan-1

न पृथिवी न जलं नाग्नि , न वायुर्द्यौर्न वा भवान्। 
एषां  साक्षिणमात्यायं ,  चिद्रूपं  विध्दि  मुक्तये।।
                                                    *अष्टावक्र गीता

अर्थात् - तू न पृथ्वी है, न जल है, न अग्नि है,न आकाश है और न वायु है। मुक्ति के लिए अपने आपको इन सबका साक्षी-रूप चैतन्य जान। 

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